मेवाड़ के वीर सपूत ,मेवाड़ केसरी ,हिन्दुआ सूरज के शौर्य और पराक्रम पर आधारित एक प्रयास.......
"कीको"
स्वतंत्र लहू
ना झुक्यो सीस कदै ,
झुक्यो बस मातर भूमि ने नवावण ने।
कीको परतंत्रता न स्वीकारी,
चाहे कोई आयो मनावण ने या डरावण ने।
पेली मारच पंदरा सो बहतर में,
जद गोगुन्दा में कीको राज धरयो।
च्यारयाँ खानी उत्सव सज्यो पण,
मुगलां रो रंग फीको आन पड़्यो।
मुगलां रा मेवाड़ी धरती हेत,
चहुँ ओर बढ़तो जतन देख
जद कुम्भलगढ़ में राणो
दूजी बार राज धरयो।
मेवाड़ी आन बचावन ने
कीको कठोर छाती सूं वचन धरयो।
"है आन मने मातरभूमि री,
जद तक मुगलां ने ना हरा भगाउँला।
मैं थाळी में रोटी नहीं खाउँला,
मैं निरमल बिस्तरां में ना सोऊँला।"
उदै सागर री पाल पर,
जद मान मनावण आयो।
बोल्यो कीको -
बैरी रे आगे सीस झुकाऊँ,
माँ मन्ने एड़ो पूत नहीं जायो।
जलाल भगवंत टोडरमल आया मनावण ,
हर एक ने पाछो अकबर खानी मोड़यो।
हर विपत काल ने जाण भी मेवाड़ भक्त,
मातरभूमि रो साथ कदै ना छोड़्यो।
जद ना विश्वास डिग्यो,अभिमान डिग्यो,
अकबर री आँख रो काँटो बण्यो कीको।
मान मुग़लियो भेज्यो भिड़ण ने,
आयो राणो चेतक पर,
काड मातरभूमि रो टीको।
मुगलां रो सामो हुयो हरावल सूं ,
बदायूनीं मेवाड़ी तलवार री चमक देखी।
चेतक असवार अर सेना रे हिवड़े में,
शौर्य री उबळती भभक देखी।
मान मुग़लियो जद हाथी पर,
राणा रे सामी आन खड़्यो।
पीठ बिठाये राणे ने चेतक,
हाथी री सूँड पर जान चड़्यो।
बाळ बाळ बच्यो मानसिंघ,
ओट लगाई जद ढाले री।
मान महावत परलोक सिधारयो,
प्रचण्ड परहार सूं भाले री।
मुगलां री सेना बिखर पड़ी जद,
झूठो संदेशो अकबर रे आवन रो आयो।
एकलो राणो लड़यो मुगलां सूं ,
मौको अब घाटी पार लगावण रो आयो।
मुगलां रो अराजक रण देख,
राणो जद मन बदळ लियो,
सैंकड़ों मुग़ल जद हमलो करयो,
हल्दीघाटी लाँघ,चेतक राणे ने सम्बळ दियो।
घाटी रे दूजी पार जद,
चेतक आखिर दम लियो।
मेवाड़ी लहू री राख आन।,
सेवा में पूरो जनम दियो।
अब भी अकबर ना मान्यो,
बारमबार अभियान करयो।
पण स्वाभिमानी राणा रे,
रत्ती भर भी ना परभाव पड़्यो।
छिट पुट झड़पां रेइ चालती,
आखिर दिवेर में संग्राम हुयो।
अकबर री एक ना चाली,
परताप सूं अणूतो परेशान हुयो।
सपना रो साझी बण्यो,
वीर परताप रो स्वाभिमान।
अकबर हाथ खींच लिया अब,
काज ओ घणो मुश्किल जाण।
मेवाड़ी स्वतंत्र लहू,
स्वाभिमान ना बेच्या करे है।
इण मेवाड़ री भूमि सूं,
शौर्य टप टप तरे है।
रातां काळी कर कीके रे सपना सूं,
अकबर पल पल डरया करतो हो।
अणगिणत जतन करण पर भी,
ओ "हिंदुआ सूरज" ना डूब्या करतो हो।
ओ "हिंदुआ सूरज" ना डूब्या करतो हो।
ओ "हिंदुआ सूरज" ना डूब्या करतो हो।
मेरी पहली राजस्थानी कविता। ....
"राही"
किशोर आचार्य